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श्री मन:कामेश्वर मंदिर में मंचित हो रही रामलीला में हुआ कई प्रसंगों का मंचन

ब्रज पत्रिका, आगरा। श्री मन:कामेश्वर मंदिर में मंचित हो रही श्री रामलीला में बारहदरी में कई लीलाओं का मंचन हुआ। श्री हरिहर पुरी और श्री योगेश पुरी की अगुवाई में आयोजित इस कार्यक्रम में शहर के गणमान्य नागरिक भी मौजूद थे। लीला स्थल पर रामलीला के मंचन में कलाकारों की मंडली ने विभिन्न प्रसंगों में विभिन्न किरदारों को अभिनीत किया। लीला स्थल पर एक प्रसंग में स्वर गूँजते हैं-

सुनहु प्रानप्रिय भावत जी का। देहु एक बर भरतहि टीका॥
मागउँ दूसर बर कर जोरी। पुरवहु नाथ मनोरथ मोरी॥

अयोध्या से श्रीरामजी की बारात जनकपुरी पहुंची और इसके बाद जानकीजी का पाणिग्रहण संस्कार की रस्में निभाई गईं। जनकपुरी में भगवान राम का माता सीता के साथ ही लक्ष्मण का उर्मिला के साथ, भरत का मांडवी और शत्रुघ्न का श्रुतिकीर्ती के साथ विवाह संपन्न हुआ। शहर वासियों ने कन्यादान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। नकद राशि एवं वस्तुएं भेंट कर पुण्य कमाया। ज्योनार के समय बाहर के कलाकारों की मीठी गालियां आकर्षण का केंद्र रही।

विदाई के समय माता सीता की मां सुनयना उन्हें उपदेश देती हैं। मां सुनयना कहती हैं कि सास ससुर और गुरु की सेवा करना, पति की आज्ञा का पालन करना। उन्होंने कहा कि बेटी गृहस्थ धर्म की गंगा में अनेक सुख-दुख के क्षण आएंगे। अब अवधपुरी और जनकपुरी दो कुलों की लाज आज में तेरे पल्ले बांध रही हूं। कोई भी कदम उठाने से पहले सोच लेना तेरे पिता सुनेंगे तो क्या कहेंगे।

विदाई पश्चात लीला में राजा दशरथ की आमसभा में प्रभु राम को राजपाट देने की घोषणा करते हैं। इसमें गुरु वशिष्ठ अपनी स्वीकृति देते हैं। यह सुनकर माता सरस्वती सभी देवताओं से कहती हैं कि अगर राम को राजा बना दिया गया तो वह वहीं के होकर रह जाएंगे। जबकि उनके हाथों से नर-नारी, संत, वनवासी एवं राक्षसों का उद्घार होना है। इसलिए तुम ऐसी कोई युक्ति सोचो कि राम को राजगद्दी नहीं मिल सके और उन्हें वनवास मिले।

नामु मंथरा मंदमति चेरी कैकइ केरि।
अजस पेटारी ताहि करि गई गिरा मति फेरि॥

मन्थरा नाम की कैकेई की एक मंदबुद्धि दासी थी, उसे अपयश की पिटारी बनाकर सरस्वती उसकी बुद्धि को फेर कर चली गईं। राजा दशरथ की ओर से राम को राज्य देने के निर्णय पर मंथरा यह समाचार कैकयी को देती है। साथ ही उसके कान भरती है कि यदि राम राजा बन गए तो तुम्हारे पुत्र भरत और शत्रुघ्न का कोई भविष्य नहीं रहेगा। कैकयी उसकी बातों में आकर कोप भवन में जाकर बैठ जाती है।

कैकयी के कोप भवन जाने की बात सुनकर राजा दशरथ उनके पास जाते हैं। कैकयी उनसे अपने पूर्व में दिए गए दो वचन देने का वादा ले लेती है। कैकयी पहले वचन के रूप में भरत को अयोध्या का राजपाट व दूसरे वचन के रूप में राम को 14 साल का वनवास मांगती है। रघुकुल की आन से बंधे राजा दशरथ अखिरकार टूटे मन से यह दोनों वचन दे देते हैं।

जिसके बाद वनवास को लेकर केकई और दशरथ के बीच खासा संवाद होता है। राजा दशरथ-“सुमुखि सुलोचनी पिक वयनी का दुख मोहि सुनाव…!” सुनाकर रूठी कैकयी को मनाने का प्रयास किया, लेकिन कैकयी ने राम को वनवास और भरत को राजगद्दी देने के अपने प्रण पर टिकी रहती है। राम बहुत ही सहजता व सरलता से यह वचन शिरोधार्य करते हैं। राम के साथ-साथ सीता व लक्ष्मण भी वनों को जाने की घोषणा करते हैं। इस दौरान अयोध्या में हाहाकार मच जाता है। राजा दशरथ के साथ ही रानी कौशल्या, रानी सुमित्रा का भी बुरा हाल हो जाता है।

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