UA-204538979-1

‘इट्स माय लाइफ’ को लेकर एक्ट्रेस जेनेलिया डिसूज़ा देशमुख ने कहा है कि, “यह फ़िल्म “हमारे पास कहने के लिए एक खूबसूरत कहानी है।”

पिता अपने बच्चे के लिए सबसे अच्छा चाहता है और बच्चा अपना खुद का रास्ता चुनना चाहता है-जेनेलिया डिसूजा

फ़िल्म एक्ट्रेस जेनेलिया डिसूजा के साथ खास बातचीत

ब्रज पत्रिका। ‘इट्स माय लाइफ’ को लेकर एक्ट्रेस जेनेलिया डिसूज़ा देशमुख ने कहा है कि, यह फ़िल्म “हमारे पास कहने के लिए एक खूबसूरत कहानी है।” ज़ी सिनेमा पर 29 नवंबर को दोपहर 12 बजे आने वाली ‘इट्स माय लाइफ’ फ़िल्म को लेकर एक्ट्रेस जेनेलिया डिसूज़ा देशमुख बेहद उत्साहित हैं। प्रस्तुत हैं इसी फ़िल्म के संबंध में उनसे हुई खास बातचीत के प्रमुख अंश।

• इट्स माय लाइफ को लेकर आपके विचार क्या हैं?

“मैंने तेलुगु में फिल्म इट्स माय लाइफ की है और इसके लिए मुझे काफी तारीफें मिली थीं। मुझे अब भी वहां राजसी के मेरे किरदार के नाम से ही जाना जाता है। इसके लिए मुझे फिल्म फेयर अवार्ड और स्टेट अवार्ड भी दिया गया था। जब मुझे पता चला कि यह हिंदी में बनाई जा रही है, तो मुझे उम्मीद थी कि मैं भी इस फिल्म में काम करूंगी। क्योंकि अक्सर मेरी कई फिल्में यहां बनाई जाती रही हैं जैसे ‘रेडी’, लेकिन कभी-कभी आपको इसे दोबारा करने का मौका नहीं मिलता। मुझे वाकई खुशी है कि मुझे इसे हिंदी में करने का मौका मिला है, क्योंकि इसने तमिल में बहुत बढ़िया प्रदर्शन किया था। मैं उम्मीद कर रही थी इस फिल्म की रिलीज पहले होगी, लेकिन यह अच्छा है कि कम से कम यह रिलीज हो रही है, क्योंकि इस फिल्म की कहानी रिश्तों के बारे में है। आप जानते हैं कि जब एक पिता और उसके बच्चे का रिश्ता हो तो यह उतना साधारण नहीं होता। मुझे नहीं लगता कि इस रिश्ते में किसी का भी मकसद एक दूसरे को चोट पहुंचाना होता है। लेकिन कभी-कभी यह सिर्फ गुस्से और एक सोच के बारे में होता है, जैसा कि इस फिल्म के प्रोमो में दिखाया गया है कि पिता अपने बच्चे के लिए सबसे अच्छा चाहता है और बच्चा अपना खुद का रास्ता चुनना चाहता है। इसमें कम्युनिकेशन गैप या गलतफहमियां होती हैं लेकिन ज्यादातर परिवारों के लिए यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। जब मैंने पहली बार यह फिल्म देखी, तो मैंने महसूस किया हमारे पास कहने के लिए एक खूबसूरत कहानी है। मुझे खुशी है कि यह फिल्म रिलीज हो रही है। यह कहानी बहुत दमदार है।”

• जेनेलिया डिसूज़ा देशमुख ने बताया इस फिल्म का सार

“यह आज के समय में बहुत सामयिक फिल्म है। असल में मैंने यह फिल्म तीन भाषाओं में की है। मैंने पहले इसे तेलुगु में किया, फिर तमिल में और अब मुझे खुशी है कि हिंदी में भी यह फिल्म रिलीज हो रही है। मुझे लगता है कि इस मुद्दे से सभी लोग जुड़ सकते हैं। जब मैंने पहली बार यह फिल्म की थी तो मैंने डायरेक्टर से इस बारे में पूछा था। तब उन्होंने कहा कि हम सभी में कुछ ना कुछ नकारात्मक बातें होती हैं जो कि असल में नकारात्मक नहीं होतीं बल्कि एक दूसरे के प्रति गलतफहमियां होती हैं और एक समय पर ये बातें बहुत नकारात्मक बन जाती हैं। हर इंसान का अपना अलग व्यक्तित्व होता है और हम कभी-कभी अपनी बात सही ढंग से नहीं कह पाते। मैं जानती हूं जब आप यह फिल्म देखेंगे तो आपको लगेगा कि ऐसा कुछ आपकी जिंदगी में भी हुआ है। होता यह है कि आप कुछ बातें अपने पैरेंट्स को नहीं बता पाते लेकिन पैरेंट्स तो अपने बच्चों के लिए बेस्ट चाहते हैं। काश यह फिल्म 10 साल पहले रिलीज हुई होती, लेकिन मैं अब भी खुश हूं कि यह रिलीज हो रही है।”

• जेनेलिया डिसूज़ा देशमुख ने खोलीं अपने किरदार और कहानी की परतें

“यह फिल्म हमेशा सामयिक रहेगी क्योंकि भले ही कितनी भी बड़ी या छोटी बात हो जाए, आप हमेशा अपने परिवार के पास लौटकर आते हैं। आपके बीच छोटे या बड़े मुद्दे होंगे, लेकिन आप जानते हैं कि यह सिर्फ छोटी-छोटी गलतफहमियों की वजह से होते हैं। इस फिल्म में मेरा किरदार वही करता है, जो उसकी मर्जी होती है। जैसे आप देखेंगे कि वो रात के 2 बजे अपनी साइकिल पर बैठकर आइसक्रीम खा रही है। वैसे तो आजकल इससे भी ज्यादा होता है। हम सभी यह सुनते हुए बड़े हुए हैं कि ‘तुम लड़की हो या तुम लड़के हो’, लेकिन यह फिल्म एक एहसास के बारे में है। उस समय जब मैंने यह फिल्म की थी, तब मैं यह सोचकर खुश थी कि हर लड़की ऐसी ही बनना चाहेगी और आज जब यह फिल्म रिलीज हो रही है तो मुझे लगता है कि हर लड़की इस सफर से जुड़ेगी। इस फिल्म की सबसे अच्छी खूबियों में से एक यह है कि इसमें पिता एक सख्त इंसान है और आपको लगेगा कि वो अपने बेटे पर हक जता रहे हैं, लेकिन उनके अपने अनुभव हैं और वो ऐसा सिर्फ इसलिए करते हैं क्योंकि वो अपने बेटे से प्यार करते हैं। उन्हें नहीं लगता कि वे अपने बेटे पर हावी हो रहे हैं। लेकिन जब एक बार बेटा उनसे कहता है, “कम से कम उस लड़की से मिल लें और ये समझ लें कि मैं उसमें क्यों दिलचस्पी ले रहा हूं।” तब पिता कहते हैं, “ठीक है उसे एक हफ्ते के लिए बुला लो और फिर हम देखते हैं।” यह बात बहुत समय पहले से वर्जित मानी जाती रही है, लेकिन मुझे लगता है कि यह बहुत जरूरी है। लोगों को जानने के लिए आपको उनसे मेल मिलाप और चर्चा करनी होती है। यह बड़ा दिलचस्प विषय है और उस समय भी यह अपने दौर से बहुत आगे की फिल्म थी, जब हमने इसे किया था। यह उस समय भी सफल रही थी, क्योंकि इसमें सही भावनाएं थीं। मुझे लगता है कि आज भी यह दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देगी। इस फिल्म का मकसद किसी को ज्ञान देना नहीं है, बल्कि यह रोजमर्रा की बात है, जिसमें एक खूबसूरत-सा संदेश है।”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!