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साहित्यकार-इतिहासकार सतीश चंद्र चतुर्वेदी का निधन, अनमोल पुस्तकों के जरिये अमर रहेंगे सदैव

ब्रज पत्रिका, आगरा। ताजनगरी आगरा को साहित्यिक क्षेत्र में बहुत बड़ी क्षति हुई है। आगरा के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार और इतिहासकार सतीश चंद्र चतुर्वेदी का 16 जून मंगलवार को निधन हो गया। बुधवार को उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। उनकी लिखी हुई पुस्तक आगरानामा और अंगिरा से आगरा तक काफी मशहूर हुईं। आज भी शोधार्थियों और पत्रकार-लेखकों के लिए आगरा को लेकर एक संदर्भ ग्रंथ के रूप में प्रयुक्त होती है। इसमें आगरा के प्राचीन स्वरूप से लेकर विभिन्न क्षेत्रों का इतिहास समेटा गया है। इसके अलावा वह समय समय पर अखबारों में भी अपने शोधपरक लेखों के जरिये चर्चा में रहा करते थे। आगरा के पुराने इलाके किनारी बाज़ार में चौबे जी का फाटक स्थित हवेली में वह रहा करते थे। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनके पिता मशहूर साहित्यकार हृषिकेश चतुर्वेदी थे जिन्होंने कि कई ग्रंथों की रचना की है, जो कि आज भी हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि हैं। उनकी हवेली लंबे समय तक हिंदी साहित्यकारों का अड्डा रही है। एक सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था के बैनरतले वह नियमित रूप से अपने निवास पर साहित्यकारों की गोष्ठियों का आयोजन भी किया करते थे, जिनमें कि तमाम मशहूर हिंदी के साहित्यकार शिरकत कर चुके हैं, उनके इस जहां से जाने के बाद उनके सुपुत्र सतीश चंद्र चतुर्वेदी ने इस सिलसिले को कायम रखा। सतीश चंद्र चतुर्वेदी के निधन का समाचार सुनकर साहित्यिक जगत में शोक की लहर व्याप्त हो गयी है। मेरा भी उनसे बतौर पत्रकार अनवरत संपर्क बना रहा। उनकी हवेली पर आयोजित साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी शिरकत करने का सुअवसर मिला। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व प्रेरणादायक था। अधिक उम्र में भी उनका लिखने और पढ़ने का शौक कम नहीं हुआ था। अपने दफ़्तर में वह इसी काम में जुटे रहते थे। आगरा की पुरातन परंपराओं और साहित्यिक-सांस्कृतिक व ऐतिहासिक धरोहरों को लेकर उनमें गहरी दिलचस्पी थी। उनका लेखन भी इसी पर केंद्रित रहा है।

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