60वें निनाद महोत्सव में पखावज, गायन एवं सितार-गिटार की युगलबंदी से गूंजा सभागार
डॉ. संतोष नामदेव को पं. रघुनाथ तलेगांवकर स्मृति “आदर्श संगीत प्रसारक” एवं प्रो. देवाशीष चक्रवर्ती को श्री पुरुषोत्तम बाल कृष्ण श्रीवास्तव स्मृति “संगीत कला संवर्धक” का मानद सम्मान दिया।
ब्रज पत्रिका, आगरा। निनाद महोत्सव के दूसरे दिन प्रातःकालीन सभा नाद साधना जो कि श्री मुकेश गर्ग जी को समर्पित की गई। कार्यक्रम के प्रारंभ में संगीत कला केंद्र, आगरा के विद्यार्थियों ने राग बसंत मुखारी में सरस्वती वंदना एवं राग अहीर भैरव में ताल चार ताल में निबद्ध नाद वंदना प्रस्तुति की।
पं. रघुनाथ तलेगांवकर जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में पंडित जी द्वारा रचित आदि भैरव एवं उसके प्रकार में राग भैरव, बंगाल भैरव, शिवमत भैरव, नट भैरव, बैरागी भैरव, अहीर भैरव में निबद्ध बंदिशे जयपुर से पधारी डॉ. उमा विजय एवं उनके शिष्यवृंद – अंशुल नागपाल, कविता आर्य, मंत्र कांटीवाल और संकेत गुप्ता ने सुन्दर प्रस्तुति की। आपके साथ हारमोनियम पर हेमेंद्र गुप्ता एवं तबले पर डॉ. लोकेंद्र तलेगांवकर ने संगत की।
कार्यक्रम के द्वितीय चरण में महर्षि पागल दास जी के प्रमुख शिष्य डॉ. संतोष नामदेव ने पखावज वादन प्रस्तुत किया। आपने पखावज वादन में चार ताल में पारंपरिक रूप से प्रस्तुत किया। आपने चार ताल में, चार धा एवं पांच धा की कमाली प्रस्तुत कर श्रोताओं को आनंदित किया। अंत में शिव परण और दुर्गा परण प्रस्तुत की। आपके साथ संवादिनी पर संगति ऊषा नामदेव एवं पं. रविन्द्र तलेगांवकर ने की।
कार्यक्रम के अंतिम प्रस्तुति के रूप में सेनिया – मैहर घराने के प्रतिनिधि कलाकार प्रो (पं.) देवाशीष चक्रवर्ती एवं देवादित्य चक्रवर्ती ने गिटार एवं सितार जुगलबंदी प्रस्तुत की। आपने राग शुद्ध सारंग की अवतारणा की आलाप, जोड़, झाला के उपरांत विलंबित तीन ताल एवं मध्य लय तीनताल की रचना प्रस्तुत की। आपके वादन में सुरों की स्पष्टता, तानों की तैयारी स्पष्ट दिख रही थी। आपने कार्यक्रम का समापन राग ज़िला काफी में धुन प्रस्तुत करके किया। आपके साथ लाजवाब तबला संगत पद्म भूषण पं. किशन महाराज जी के प्रमुख शिष्य डॉ. हरिओम हरि (खैरागढ़) ने की और कार्यक्रम को स्वरमयी ऊंचाई तक पहुंचाया।
इस अवसर पर डॉ. संतोष नामदेव को पं. रघुनाथ तलेगांवकर स्मृति “आदर्श संगीत प्रसारक” एवं प्रो. देवाशीष चक्रवर्ती को श्री पुरुषोत्तम बाल कृष्ण श्रीवास्तव स्मृति “संगीत कला संवर्धक” का मानद सम्मान दिया गया।