सितारों में शुमार होने की भी ख्वाहिश थी मेरी, मायानगरी मुम्बई पहुँचते ही, चमके मेरे सितारे-एक्ट्रेस नितिका शर्मा
डॉ. महेश चंद्र धाकड़
आगरा। ताजनगरी आगरा से मुंबई मायानगरी जाकर अपने लिए मुकाम तलाशने निकली युवाओं की जमात में फ़िल्म और टेलीविजन अभिनेत्री नितिका शर्मा का भी एक नाम है, जिन्होंने शुरुआती सफलताओं से एक पहचान बनाई है। वह आज भी अपनी अभिनय प्रतिभा पर अटूट भरोसा करती हैं। उन्हें विश्वास है कि उनको उनका मनचाहा मुकाम एक दिन जरूर मिलेगा। आगरा के आनंद शर्मा और मीरा शर्मा के मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी एक्ट्रेस नितिका शर्मा के अभी तक के सफर को देखते हुए किसी शायर की शायरी की ये पंक्तियाँ सटीक ही लगती हैं।
“जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है,
मंजिल के कई इम्तिहान अभी बाकी है,
अभी तो नापी है मुट्ठी भर ज़मीं हमने,
अभी तो सारा आसमान बाकी है।”
टीवी सीरियल ‘उतरन’ और ‘बाबा एसो वर ढूंढो’ से घर-घर में एक पहचान हासिल कर चुकी एक्ट्रेस नितिका शर्मा से ब्रज पत्रिका ने खास बातचीत की, प्रस्तुत हैं इस लंबी बातचीत के कुछ अहम अंश।
आप अभिनय और मॉडलिंग की दुनिया में कैसे आईं? क्या आपका शुरू से ही सपना था इस ग्लैमर इंडस्ट्री में करियर बनाने का?
“मेरा बचपन से ही सपना था कि मैं कुछ अलग करूं जिसमें मुझे खुद को भी अच्छा लगे.. जिसमें नाम भी हो और पैसा भी हो। क्योंकि मैं डांस या नाटक तो स्कूल टाइम से ही करती आ रही थी, जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि बचपन से ही मुझे डांस या नाटक परफॉर्मेंस करना अच्छा लगता था। मेरी मम्मी चाहती थी कि मैं डॉक्टर बनूं, पर उनको समझ आ गया था कि मैं कुछ और ही करना चाहती हूं।”
आपको पहला ब्रेक किस प्रोजेक्ट का मिला और कैसे?
“खैर वैसे तो मैंने पहला कैमरा फेसिंग आर.ए. मूवीज के प्रोडक्शन से किया है, लेकिन मुझे बड़ा ब्रेक कलर्स पे आ रहे टीवी शो ‘उतरन’ से मिला, जिसमें मेरा किरदार का नाम मासूम था, वहां से मैं हर घर-घर में पहचानी जाने लगी। लोग मेरे अभिनय को बहुत पसंद करने लगे, उसके बाद मिला ‘ऐसो वर ढूंढो’ जो इमेजिन टीवी पर आया था।”
आपके अभी तक के करियर के कौन कौन से अहम पड़ाव रहे हैं?
“मैं जब मुंबई शिफ्ट हुई थी तब मुझे गॉड ग्रेस तीन महीने के अंदर ही मेरा पहला शो मिला, जिसके लिए मैंने ऑडिशन दिया था। ऐसे कहूँ तो मेरे पर ऊपर वाले का साथ रहा और किस्मत ने भी बहुत साथ दिया, जिससे कि मेरे एक के बाद एक काम बनते चले गए। जहाँ लोगो को मुंबई में सालो साल लग जाते हैं, मुझे मुंबई आने के तीन महीने के अंदर ही दो बड़े टीवी शो मिल गए। मैंने इनका ऑडिशन पास किया।”
किस प्रोजेक्ट पर काम करते हुए आपको सबसे ज्यादा खुशी हुई?
“यह तो पूछने की बात ही नहीं है, जब मैंने मेरा पहला टीवी शो ‘उतरन’ किया कलर्स चैनल के लिए तब मुझे बहुत खुशी हुई, और उसके बाद मेरी मुख्य भूमिका वाली पहली हिंदी फिल्म ‘लव यू क्रेजी गर्ल’ और ‘चल भाग’।”
करियर के उतार चढ़ाव जिंदगी का हिस्सा होते हैं, क्या कोई वक्त आपकी जिंदगी में भी ऐसा आया, जिसने आपको निराश किया हो या फिर आप बिल्कुल टूट सी गईं हों?
“हां ये वो पल होता है जो हर किसी की जिंदगी में कभी ना कभी आता ही है जिसमें आपको निराशा होती है। एक अभिनेता या अभिनेत्री अपने काम या अभिनय को लेकर बहुत ईमानदार रहता है, पर जब इस इरादे के साथ कड़ी मेहनत होती है मगर फिर भी अभिनेता या अभिनेत्री के अभिनय की मेहनत को जब बहुत से लोग दबाने की कोशिश करते हैं। इसको ऐसे भी कहा जा सकता है कि बहुत जगह लोग पक्षपाती हो जाते हैं, वो जो सराहना मिलनी चाहिए या जिसके हम हक़दार होते हैं वो हमसे छीन ली जाती है। मैं किसी प्रोडक्शन का नाम नहीं लूंगी पर मुझे एक फिल्म के लिए बेस्ट नेगेटिव एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला था, जिसमें जानी – मानी एक टीवी एक्ट्रेस ने भी काम किया था। उस फिल्म के प्रोड्यूसर ने आज तक मेरा वो अवॉर्ड मुझे नहीं दिया, अपने पास ही रखा हुआ है, और बाकी का मेरी परफॉर्मेंस का पेमेंट आज तक नहीं किया, बहुत दुख हुआ मुझे मेरी मेहनत की ट्रॉफी अवॉर्ड भी नहीं दी।”
अभी तक आपने कौन कौन से प्रोजेक्ट इंडस्ट्री में किए हैं?
“ये मेरे लिए बहुत गर्व की बात है कि मैं आगरा से निकल कर मुंबई महानगरी में अपनी एक पहचान बना सकी। मेरी फैमिली में कोई भी फिल्म इंडस्ट्री से नहीं है, न कोई मुंबई में मेरा सपोर्ट करने वाला था। खुद मेरी मेहनत, मेरी फैमिली के साथ, मेरे शुभचिंतकों के साथ और दुआओं से ही मैंने वो मुकाम हासिल किया जो कि एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले के लिए चैलेंज की बात होती है।”
आपको फिल्म, टेलीविजन और ओटीटी इन तीनों में से किस माध्यम में काम करना सबसे ज्यादा पसंद है?
“ऐसे कहूँ तो मेरी शुरुआत या मेरा नाम टीवी से ही हुआ है तो इसको तो मैं हमेशा इज्जत करती हूं। पर बात ऐसी है कि टीवी पर पैसा बहुत है, पर नींद या आराम नहीं है। टीवी पर काम करते हुए बहुत मेहनत के साथ-साथ हम बंध से जाते हैं। सुबह छह बजे से रात दस बजे तक। हमारे एग्रीमेंट के हिसाब से महीने के 30 दिन की बुकिंग हो गई। अब हम कहीं नहीं जा सकते, न कुछ और ही कर सकते हैं। हमको शूट हो या न हो, हर टाइम रेडी रहना होता है कि कभी भी कॉल टाइम आ सकता है। मुझे अभी भी याद है वो दिन जब मुझे 104 बुखार था, अगले दिन चैनल को एपिसोड देना था, मैंने बहुत बोला कि मैं शूट नहीं कर पाऊंगी। लेकिन एग्रीमेंट के दबाव में आपको जाना पड़ता है। कुछ भी हो सकता है, किसी भी हाल में शूट किया जा सकता है, करना है तो बस करना है। न होली न दिवाली न कोई फंक्शन आपकी पूरी फैमिली लाइफ सिमट कर रह जाती है शूटिंग स्थल पर। लगता है सब यहीं है जब तक आप एग्रीमेंट से मुक्त नहीं हो जाते तब तक। मैं चाहती हूं कि सप्ताह में एक या दो दिन का ऑफ देना शुरू कर दें तो कलाकार रिफ्रेश हो सकता है। कुछ फिल्मों और वेब सीरीज के बारे में भी कहना चाहूंगी, मुझे फिल्में या वेब सीरीज करना पसंद हैं, यहां फर्क इतना है कि एक टाइम तक हम अपनी परफॉर्मेंस या शूट करते हैं, वही मेहनत होती है, पर यहां हमको इतना पता होता है कि कुछ टाइम शूट होने के बाद हम अपनी पर्सनल लाइफ जी सकते हैं। हम अपनों के लिए भी टाइम निकल सकते हैं, या कुछ दिन आराम कर सकते हैं, फिर हर अगले प्रोजेक्ट के लिए अलग तरह से अलग गेटअप, अलग रोल, वो सब अच्छा लगता है। अलग-अलग रोल करने को मिलते हैं। जहां हर चीज चेंज होती है। कहानी चेंज होती है। इसलिए मैं इससे ज्यादा प्रेम करती हूं।”
आपकी कामयाबी का श्रेय आप किसको देना चाहेंगी, अपने परिवार से आपको सपोर्ट मिला या नहीं?
“मेरी कामयाबी के पीछे मेरी दुनिया, मेरा सब कुछ, जिनको मैं अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती हूं, वो हैं मेरी प्यारी मां, जिन्होंने हर मोड़ पर मेरा साथ या मेरा हाथ थाम कर रखा है। वेसे तो मेरी फैमिली में सबने मेरा साथ दिया। मेरे पापा जी, मेरी दोनों बहनें, मेरे दोनों भाई, सबका साथ मिला है। मैं श्रेय उनको भी देना चाहूंगी, जिन्होंने मेरे परिवार को मना लिया कि मैं एक अच्छी कलाकार हूं, मुझे मोका मिले तो मैं बहुत अच्छा काम कर सकती हूं, और वो शख्स हैं रंजीत सामा जी, जिनकी फिल्म प्रोडक्शन कंपनी से मैंने अभिनय शुरू किया था। जब उन्होंने मेरी परफॉर्मेंस देखी तो मुझे प्रोत्साहित किया। वैसे ही मशहूर चरित्र अभिनेता रजा मुराद जी ने भी मेरी परफॉर्मेंस देखने के बाद मुझसे कहा था कि तुम यहां आगरा में क्या कर रही हो मुंबई जाओ। यह बात तब की है जब मैं उनके साथ आर. ए. मूवीज की फिल्म ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ की शूटिंग कर रही थी। उसकी शूटिंग उस दौरान मेरे होम टाउन आगरा स्थित गुरुद्वारा गुरु का ताल में हो रही थी।”
अभी तक जितने भी कलाकारों के साथ आपने काम किया है उनमें से किसने आपको सबसे ज्यादा प्रभावित किया?
“वैसे तो हर कलाकार की अपनी एक अलग पहचान होती है पर बात प्रभावित होने की है तो वो मेरी फिल्मों में काम करने वाले एक्टर्स से कहीं न कहीं मैं प्रभावित हुई हूं। क्योंकि मैंने देखा है कि बड़े कलाकार डायलॉग याद नहीं करते वो खुद का इम्प्रोवाइजेशन करते हैं। जैसे मेरी हिंदी फिल्म ‘चल भाग’ में मेरे अपोजिट पुरुष अभिनेता दीपक डोबरियाल जी थे, सेट पर जो इम्प्रोवाइजेशन करते थे, बहुत अच्छा होता था। साईं बाबा पर बनी मेरी एक और हिंदी फिल्म में अभिनेता किरण कुमार जी, अभिनेता राजू खेर जी सबसे मैं कभी प्रभावित हुई।”
मॉडलिंग में भी आपने कुछ अच्छे प्रोजेक्ट किए होंगे उनके बारे में भी बताइएगा?
“मैं एक अभिनेत्री हूं, मैंने प्रिंट शूट या विज्ञापन शूट के रूप में मॉडलिंग तो की है, रैंप शो के लिए नहीं। वैसे भी पेशेवर तौर पर मैं मॉडल नहीं हूं, मैं अभिनेता हूं। हां वो बात अलग है कि मैंने स्कूल-कॉलेज में जरूर रैंप शो के लिए मॉडलिंग की है।”
आपकी भविष्य की क्या योजना है इस इंडस्ट्री में?
“मैं अपने काम को लेकर थोड़ा चूजी हूं। मैं काम ऐसा करना चाहती हूं, जिसमें मैं अपने अभिनय से एक छाप छोड़ सकती हूं। मुझे चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं पसंद हैं। चाहे फिर वो कोई वास्तविक कहानी पर आधारित हो या कॉमेडी हो या रोमांटिक हो। मैं जो भी काम करूं, वो यादगार रहे, जो मेरे इस दुनिया में जाने के बाद भी याद रहे।”
ग्लैमर इंडस्ट्री में आपने कदम रखे उस वक्त आपकी पढ़ाई चल रही होगी क्या उसमें कोई व्यवधान हुआ इस करियर के चलते?
“वैसे देखा जाए तो मैंने बाल कलाकार के तौर पर अपना पहला अभिनय किया था। मेरे परिवार का समर्थन इसी कड़ी शर्त पर मेरे साथ रहा था कि चाहे कुछ भी हो जाए मैं अपनी शिक्षा नहीं बंद करूंगी। मैंने अभिनय और शिक्षा दोनों को ही प्राथमिकता दी। मेने जब मुंबई आने का फेसला किया था, उस समय मैं बहुत छोटी थी पर मेरी एक्टिंग के साथ-साथ अपने एग्जाम की भी तैयारी थी और मैंने कैसे दोनों एक साथ संभाले, मैं खुद हैरान हूं। देखते-देखते एक के बाद एक शूट भी करती गई। एक के बाद एक डिग्री भी लेती गई। मैंने इकोनॉमिक्स से एम.ए. किया। आज भी मेरी एजुकेशन बंद नहीं है। आज भी मैं कुछ न कुछ सीखती रहती हूं। क्योंकि एजुकेशन कभी खत्म नहीं होती।”
आप काफी अनुभव ले चुकी हैं इस करियर में आने वाले युवाओं के लिए क्या संदेश देना चाहेंगी आप?
“हाहा…अनुभव कहाँ खत्म होता है। हर मोड़ पर एक नया अनुभव तैयार रहता है। पर हां अभी तक मैंने जो कुछ भी देखा है, सीखा है या समझा है। उसमें एक ही संदेश दूंगी कि परिवार का समर्थन सबसे पहले है। उनका साथ होगा तो आप यहां मायानगरी में आने के बाद भटकेंगे नहीं। आपका डायरेक्शन सिर्फ एक ही जगह होना चाहिए जो आप बनने आए हैं, और आप जिस सोच के साथ आए हैं। वरना हम सबने देखा है कि लाखों लोग आते हैं यहां कुछ सोच के साथ, लेकिन गलत आदतों में पड़ जाते हैं। अपना टाइम और पैसा सब बर्बाद कर देते हैं। बाकी तो आजकल सब समझदार हैं।”
मौजूदा दौर में स्टार किड्स ने फिल्मी दुनिया में बाहर के लोगों के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं, क्या लगता है आप जैसे मीडियम क्लास फैमिली से अपने बूते पर जगह बनाने की कोशिश करने वाले युवा कलाकारों को?
“स्टार किड्स…हम्म…ये भी एक गंभीर समस्या है, इसमें जितना अंदर जायेंगे, उतने ही सवाल सामने आएंगे। इस बात से इंकार नहीं कर सकते। गॉडफादर या सदियों से पारिवारिक इंडस्ट्री को चलाने वाले फिल्मी गुरु उनकी बैक बोन हैं। इनका अपना एक नाम या दबदबा भी है। जो बाहर से आकर अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं, उनका न कोई गॉडफादर, न कोई बैक बोन होता है। यहां जिनको नॉलेज नहीं होती, उनको कास्टिंग डायरेक्टर या मैनेजर चूना लगाकर चले जाते हैं। यहां कुछ लोग भारी कमीशन पर काम दिलाते हैं, जितना आप शूट करते हैं मेहनत करके पैसा कमाते हो, उसमें से वो आधे से ज्यादा कमीशन ले लेते हैं। यहां आपकी किस्मत या परिवार या आपका ज्ञान ही काम आता है।”
फ़िल्म और टीवी सहित पूरी ग्लैमर या एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के बारे में ये खबरें भी उड़ती हैं कि वहां फीमेल आर्टिस्ट का शोषण भी होता है, इसमें कितनी सच्चाई है, क्या आपका कभी कास्टिंग काउच से सामना हुआ, किसी ऑडिशन या कास्टिंग कॉल के दौरान?
“ये बात तो मैंने खुद सुनी थी जब मैं मुंबई नहीं आई थी घरवालों को इन सब बातों का डर जरूर होता होगा। पर मैं एक बात जरूर बोलूंगी कि यहां लोगों की पहचान करना सबसे बड़ा टास्क है। और जैसा कि कहा फैमिली के एक सदस्य का होना भी बहुत जरूरी है यहां। क्योंकि हर तरीके के लोग हैं। 50% गलत हैं तो 50% सही हैं। असली स्ट्रगल तो यहां से शुरू होता है कि आपको सही लोगों तक जाना है। जहां असली एक्टर्स की तलाश होती है। ऑडिशन होते हैं तो हर इंसान को खासकर लड़की को इतना तो समझ आ जाता है कि सामने वाले का इरादा क्या है। वो आप पर निर्भर होता है कि तुम्हें किस रास्ते पर जाना है। रही मेरी बात तो जैसा कि मैंने कहा कि मैं पहले से ही मुंबई में एक अभिनेत्री के रूप में आई थी। मैंने पहले काम किया था फिल्मों में। मुझे अपने ऊपर पूरा विश्वास था कि एक बार बस पैर रखने की जगह मिल जाए, बाकी जगह तो मैं खुद बना लूँगी। वही हुआ जैसा मैंने पहले बताया कि मेरे ऊपर भगवान का हाथ या मेरी किस्मत अच्छी थी, जो मैंने पहला ऑडिशन दिया उसमें ही मैं एक बार में ही सलेक्ट हो गई। उनको हमारे जैसे किरदारों के लिए एक कलाकार की जरूरत थी, जिसमें मैं फिट हो रही थी। टीवी शो का सिलेक्शन या रिजेक्शन टीवी चैनल वाले ही करते हैं। जो बिग बॉस की तरह होते हैं, जो दिखते नहीं हैं, पर सुनाई देते हैं। जब एक शो आपको मिल गया या आपका नाम हो गया, मतलब आपको फेम मिल गया तो स्ट्रगल बहुत कम हो जाता है। मेरे को जब भी ऐसे लोग नजर आए, जिनका इरादा सही नहीं था, वहां मैं दोबारा जाती नहीं हूं। भले मुझे काम मिलने में थोड़ा टाइम ही क्यों न लग जाए। बाकी रही बात शोषण की तो वो कहां-कहां नहीं होता। राजनीति में, कॉर्पोरेट सेक्टर में, स्कूल-कॉलेज में टीचर द्वारा स्टूडेंट का, कितने ही परिवार में छोटे बच्चों का शोषण होता है। पब्लिक प्लेस में, बस में, ट्रेन में, हर जगह। हर जगह शोषण होता है। मेरा ये सवाल उन सबसे है कि सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री को ही क्यों कहा जाता है कि यहां शोषन होता है। जबकि हर एक सेक्टर में महिलाओ या बच्चों के साथ शोषण होता है।”
एक्ट्रेस नितिका शर्मा की परिवार के साथ और बचपन की तस्वीरें