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मैं रहता हूँ जहाँ पर हैं मकानों के घने जंगल। जहाँ पसरी हैं सड़कें साँपिनों सी, दिल हुए मरुथल…

डॉ. बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय के जुबली हॉल में हिंदी साहित्य भारती ने किया डॉ. राजकुमार रंजन के नवगीत संग्रह ‘संदली हवाएँ’ का विमोचन।

समारोह के दूसरे सत्र में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में बही काव्य की रसधार ने सबको भाव-विभोर कर दिया।

ब्रज पत्रिका, आगरा। हिंदी साहित्य भारती के तत्वावधान में सोमवार-दोपहर डॉ. बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय के जुबली हॉल में देश के मशहूर गीतकार डॉ. राजकुमार रंजन के नवगीत संग्रह “संदली हवाएँ” के विमोचन के साथ अखिल भारतीय कवि सम्मेलन आयोजित किया गया।

विधान परिषद सदस्य (शिक्षक खंड) डॉ. आकाश अग्रवाल उद्घाटनकर्ता रहे। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के पूर्व कार्यकारी उपाध्यक्ष प्रोफेसर सोम ठाकुर ने समारोह की अध्यक्षता की। हिंदी साहित्य भारती के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. रवींद्र शुक्ल और केंद्रीय हिंदी संस्थान में नवीकरण एवं भाषा प्रसार विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर उमापति दीक्षित मुख्य अतिथि रहे। विख्यात गीतकार रामेंद्र मोहन त्रिपाठी, समाजसेवी महेंद्र कुमार गोयल, निखिल प्रकाशन के मोहन मुरारी शर्मा और राज वर्मा विशिष्ट अतिथि रहे। कार्यक्रम का संयोजन और संचालन वरिष्ठ कवि डॉ. अंगद धारिया ने किया।

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. आरएस तिवारी ‘शिखरेश’ ने लोकार्पित कृति की समीक्षा करते हुए कहा कि,

“इस संग्रह में यथार्थ के धरातल पर युगबोध के साथ नवगीत का अभिनव प्रयोग पाठक की चेतना को स्पंदित करता है। इसमें कल्पना एवं चिंतन का बेजोड़ संगम आदि से अंत तक ध्वनित है।”

कवि कुमार ललित ने समीक्षा करते हुए कहा कि,

“डॉ. राजकुमार रंजन प्रेम, सौंदर्य और दर्शन के साथ-साथ उत्साह, उल्लास, आशावाद, उत्सवधर्मिता, जिजीविषा और युगीन संवेदना को बखूबी पिरोने वाले बेहतरीन गीतकार हैं। अच्छे गीत पढ़ने की प्यास लिए पुस्तक मेलों, पुस्तक विक्रेताओं की दुकानों और पुस्तकालयों में पहुँचने वाले पाठकों को उनका यह नवगीत संग्रह पढ़कर अवश्य ही तृप्ति मिलेगी।”

विश्वविद्यालय के जुबली हॉल में बही गीत-काव्य की संदली हवाएं

समारोह के दूसरे सत्र में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में बही काव्य की रसधार ने सबको भाव-विभोर कर दिया। लोकार्पित कृति के रचनाकार और देश के मशहूर गीतकार डॉ. राजकुमार रंजन के इस नवगीत ने सबको वाह-वाह करने पर मजबूर कर दिया-

“मैं रहता हूँ जहाँ पर हैं मकानों के घने जंगल। जहाँ पसरी हैं सड़कें साँपिनों सी, दिल हुए मरुथल।”

प्रसिद्ध गीतकार दिनेश प्रभात (भोपाल) ने प्रेमानुभव को यूँ व्यक्त किया-

“दर्द की नब्ज जान ली हमने। वक्त की बात मान ली हमने। प्यार के पंख क्या दिये तुमने। व्योम छूने की ठान ली हमने।”

रजिया बेगम ‘जिया’ (धौलपुर) ने बादलों का यूँ आह्वान किया-

“ओ रे! आवारा बादल काहे सताये। आजा बरसा जमके कुछ न सुहाये।”

डॉ. राधेश्याम मिश्र (कानपुर) की इन पंक्तियों ने सबमें साहस का संचार किया-

“जिसका लक्ष्य बड़ा होता है। आगे वही खड़ा होता है। होती जय जयकार उसी की। जो रणभूमि लड़ा होता है।”

अखिल भारतीय कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे ख्याति प्राप्त गीतकार प्रोफ़ेसर सोम ठाकुर ने हिंदी वंदना प्रस्तुत कर सबका दिल छू लिया-

“करते हैं तन-मन से वंदन, जन गण मन की अभिलाषा का। अभिनंदन अपनी संस्कृति का, आराधन अपनी भाषा का।”

संजीव तन्हा (अलीगंज) ने कलम बेचने वालों पर कटाक्ष किया-

“जिसमें आकर्षण नहीं वो छवि नहीं है। है नहीं जिसमें तपन वो रवि नहीं है। स्वार्थ हित जो बेंच दे अपनी कलम। ऐसा कवि अपनी नजर में कवि नहीं है।”

शरद मिश्र ‘लंकेश’ (पटियाली) की इस रचना ने सबके मन को छू लिया-

“मुफ़लिसी की गोद में जब बेवसी देखी गयी। रोटियों की जंग लड़ते ज़िन्दगी देखी गयी। क़ैद सूरज कर लिया है इस अमीरे शहर ने।छटपटाती झोपड़ी में रोशनी देखी गयी।”

कवि सम्मेलन में सुप्रसिद्ध कवि रामेंद्र मोहन त्रिपाठी, सतीश समर्थ (करहल), राम राहुल (टूंडला), संजय संगम (मंडला), गिरीश जैन ‘गगन’ (फिरोजाबाद), मंजुल मयंक (फिरोजाबाद), प्रशांत देव मिश्र (एटा), वेद प्रकाश मणि (अलीगढ़), डॉ. संतोष संप्रीति (दिल्ली), नीतू गुप्ता गयावी (गया, बिहार), डॉ. राघवेंद्र शर्मा, डॉ. केशव शर्मा, शिव शंकर सहज, संजय गुप्त और हेमा श्री हेम (लखनऊ) ने भी अपनी कविताओं से समां बाँध दिया।

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