UA-204538979-1

फिल्म निर्देशक आखिर में अकेला ही होता है-चैतन्य ताम्हाणे

चैतन्य ताम्हाणे भारतीय 51वें अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के ‘इन-कन्वर्सेशन’ सत्र में बोले-निर्देशक का 90 फीसदी काम एक प्रबंधक का है।

“फिल्म के लिए सही किरदारों का चुनाव मतलब 70 फीसदी काम खत्म”

ब्रज पत्रिका। स्वतंत्र सिनेमा निर्माण पर अपने विचार और सुझाव साझा करते हुए मशहूर फिल्म निर्देशक चैतन्य ताम्हाणे ने कहा है कि, स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं को शुरुआत एकदम सतह से करनी पड़ती है। ताम्हाणे ने यह बात 51वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के ‘इन-कन्वर्सेशन’ सत्र में बॉलीवुड हंगामा के फरीदून शहरयार से बातचीत में कही।

एक स्वतंत्र फिल्म निर्माता फिल्म के लिए बजट कैसे तय करता है?

“इसका कोई निश्चित फॉर्म्यूला नहीं है और मैं फिल्म के लिए हर चीज शुरू से जुटाना शुरू करता हूं। ज्यादातर स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं के लिए पैसा जुटाना बेहद मुश्किल काम होता है। फिल्म के लिए बजट तय करने में कई चीजें निर्णायक भूमिका में होती हैं। उदाहरण के लिए मुंबई जैसे शहर में शूटिंग करना निश्चित तौर पर मंहगा होता है। साथ ही यह फिल्म निर्देशक के काम करने के तरीके पर भी निर्भर करता है। स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं को पैसा बेहद सोच समझ कर खर्च करने की जरूरत होती है। मैं व्यक्तिगत रूप से फिल्म निर्माण के वित्तीय पहलुओं पर बहुत अधिक नियंत्रण रखता हूं।”

फिल्म के विषय का चुनाव

“मैं उसी विषय पर फिल्म बना सकता हूं जो मुझे रोचक लगते हैं। किसी भी फिल्म को बनाने के लिए एक आशावादी नजरिया और उम्मीद चाहिए होती है। एक फिल्म निर्माता का जिज्ञासु होना और विभिन्न संस्कृतियों को जानने की ललक होनी जरूरी है।”

ओटीटी बनाम बड़ा पर्दा

“ओटीटी प्लैटफॉर्म्स ने आज के वक्त में स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं को नई जिंदगी दे दी है। वास्तव में भारत में मेरी फिल्मों का कोई बाजार नहीं है। इससे भी ऊपर की बात ये कि इन फिल्मों के लिए दर्शक पाने के लिए इनकी मार्केटिंग बेहद व्यवस्थित और रणनीतिबद्ध तरीके से करनी पड़ती है। इससे पहले एकाधिकार वाली फिल्म वितरण चेन में अपनी फिल्मों को लोगों तक पहुंचाना बेहद चुनौती भरा काम था। ऐसे में ओटीटी माध्यमों से हमारे लिए संभावनों की खिड़की खुली है।”

स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं को अपनी फिल्मों के लिए दर्शक खोजने की चुनौतियों के बारे में बात करते हुए चैतन्य ने जोर देकर कहा कि, दर्शकों की भी ये जिम्मेदारी है कि वे यह संदेश बाजार को दें कि इस तरह के सिनेमा की उन्हें जरूरत है।

हालांकि इस मामले में थिएटरों को कोई नहीं पछाड़ सकता। चैतन्य कहते हैं,

“मुझे नहीं लगता है कि थिएटर में जाकर फिल्म देखने के अनुभव को कोई और माध्यम टक्कर दे सकता है। आज के दौर में दुनिया भर का थिएटर उद्योग संघर्ष कर रहा है और मैं हमेशा चाहूंगा कि थिएटर अपनी लोकप्रियता को बरकरार रखें ताकि सिनेमा के शौकीन लोग हमेशा की तरह सिनेमा हॉल जाकर फिल्म का आनंद लेते रहें।”

अल्फोंसो कुरों से सीखने का अनुभव

चैतन्य तम्हाणे ने बताया कि उन्हें ऑस्कर विजेता फिल्म ‘रोमा’ पर काम करते हुए मैक्सिकन निर्देशक अल्फोंसो कुरों के साथ एक साल बिताने का मौका मिला।

“रोमा के सेट पर उन्हें काम करते देखना बेहद यादगार अनुभव था। इस अनुभव ने मुझे सिखाया कि फिल्म निर्माण एक शिल्प है। महत्वपूर्ण बात एक दृष्टि या विजन के होने की है। यह एक परम आनंद था। इस अनुभव ने निश्चित रूप से मुझे फिल्म-निर्माता के रूप में अपनी शब्दावली का विस्तार करने में सक्षम बनाया है।”

‘द डिसाइपल’

चैतन्य तम्हाणे ने जानकारी दी कि उनके द्वारा लिखी, निर्देशित और संपादित फिल्म ‘द डिसाइपल’ को जल्द ही दुनिया भर में दिखाया जाएगा।

यह मुंबई में ‘भारतीय शास्त्रीय संगीत और उसकी उपसंस्कृति के भित्तिचित्रों’ पर आधारित मराठी गाथा है। यह उनकी दूसरी फिल्म है जिसका अल्फोंसो कुरों एग्जीक्यूटिव प्रॉड्यूसर के रूप में समर्थन कर रहे हैं। साथ ही इसे बनाने के लिए कई अन्य देशों से भी हाथ मिलाया गया है। इसे पोलैंड से सिनेमैटोग्रफर मिशल सोबिसोस्की ने शूट किया है। वहीं के स्वतंत्र वितरक न्यू यूरोप फिल्म सेल्स और कैलिफोर्निया स्थित एंडेवर कंटेंट इसकी बिक्री का काम संभाल रहे हैं। लॉस एंजिल्स स्थित फिल्म कंपनी ‘पार्टिसिपेंट’ ने एक सलाहकार की भूमिका निभाई है और फिल्म की मिक्सिंग का काम जर्मनी में किया गया है।

फिल्म निर्देशक होने का मतलब

“एक अच्छा फिल्म निर्देशक वही है, जो अच्छा प्रबंधक भी है क्योंकि 90 प्रतिशत काम प्रबंधन का ही है। फिल्म मेकर की भूमिका ऑर्केस्ट्रा के संचालक की होती है। आदर्शवाद के लिए यहां न्यूनतम जगह है। और अगर बात करें निर्देशक के जिम्मेदारियों की, तो उसका काम है अपनी टीम के जोश को बनाए रखना। आप निर्देशक के रूप में बहुत सारे लोगों से बहुत सारी बातें करते हैं, मगर आखिर में आप खुद अकेले ही होते हैं। अगर फिल्म नहीं चलती है तो यह एक फिल्म निर्देशक की ही हार होती है। इस तरह यह एक अकेलेपन का काम है। एक फिल्ममेकर का जीवन बेहद भागदौड़ भरा है।”

स्क्रिप्ट की अहमियत

तम्हाणे कहते हैं कि स्क्रिप्ट फिल्म निर्देशक की सोच का खाका होती है। “मेरे काम करने के तरीके में स्क्रिप्ट पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाता है। आखिर में फिल्म उसके बारे में है जो आप कहना चाहते हैं। आज के सिनेमा में अच्छे स्क्रिप्ट लेखन की बहुत जरूरत है।”

चैतन्य का मानना है कि फिल्म को लिखने का काम एक एकांत प्रक्रिया है।

संवेदनशील मुद्दों पर फिल्म निर्माण

“फिल्म मेकिंग में अभी भी काफी सेल्फ-सेंसरशिप है। कायदे से फिल्मों पर किसी भी तरह की सेंसरशिप नहीं होनी चाहिए। कई फिल्म निर्देशक हैं जिन्होंने संवेदशनशील मुद्दों पर अपनी कहानियां कहने के कई चालाक तरीके निकाल लिए हैं। कई बार आप पर लगने वाला नियंत्रण भी आपमें रचनात्मकता ले आता है।”

फिल्मों की भाषा

तम्हाणे कहते हैं कि भाषा बनावट का विषय है। “मैं अपनी फिल्म को उस भाषा में बनाउंगा जिसमें उसकी कहानी सबसे सही तरीके से कही जा सके। सिनेमा की अपनी एक सार्वभौमिक भाषा है। इसलिए किसी भी अन्य भाषा की अहमियत उतनी नहीं होती। आज के वक्त में लोग सब्टाइटल्स के साथ फिल्में देखने के आदी हो चुके हैं।”

कास्टिंग कितनी महत्वपूर्ण

“फिल्म की स्क्रिप्ट के बाद, कास्टिंग ही सबसे जरूरी चीज है। फिल्म के लिए सही कास्टिंग हो गई मतलब 70 प्रतिशत काम खत्म। हम फिल्में देखने इसलिए जाते हैं क्योंकि इनमें हमें इंसान दिखता है। दर्शकों को फिल्म देखकर उसकी कहानी और किरदारों से जुड़ाव महसूस होना चाहिए।”

निर्देशक के सीखने की प्रक्रिया

“मुझे लगता है कि किसी भी निर्देशक के लिए भी जरूरी है कि वो हमेशा सीखता रहे। मगर असल जिंदगी का अनुभव ही सबसे बड़ा शिक्षक होता है। इससे भी जरूरी यह कि इंसान अपने काम के प्रति संजीदा और ईमानदार हो।”

मौन का महत्व

“जीवन में मौन बेहद जरूरी है। अगर एक फिल्म भी शोर की तरह हो तो व्यक्तिगत तौर पर मैं प्रभावित नहीं होता हूं। एक फिल्म में कंट्रास्ट, लय और बनावट की जरूरत होती है।”

फिल्म की आयु

“पहले से यह तय नहीं की जा सकती। किसी भी फिल्म की आयु दर्शकों की उस पर प्रतिक्रिया से तय होती है।”

उभरते निर्देशकों को सलाह देते हुए तम्हाणे कहते हैं कि आज के वक्त में मनोरंजन उद्योग के बदलते परिदृश्य के हिसाब से चलने की जरूरत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!